हमारे हाथों की किस्मत में.......

     ग़ज़ल


हमारे हाथों की किस्मत में काम है कि नहीं
हमारी रोज़ी का कुछ इंतज़ाम है कि नहीं
हमारे शहर में हाय हेलो का कल्चर है
तुम्हारे गाँव मे अब राम राम है कि नहीं
वो बादशाह इसी फिक्र में ही रहता
तमाम शहर हमारा ग़ुलाम है कि नहीं
मैं प्यार बांटता फिरता हूँ सारी बस्ती में
ये नफरतों से मेरा इन्तेक़ाम है कि नहीं
मैं उस नगर में यही देखने गया  मिन्नत
की उस गली में वो सूरत हराम है कि नहीं ।



       मिन्नत गोरखपुरी
     युवा शायर एवं संचालक
    स्वर्गीय मनोहर परिकर साहित्यिक सम्मान एवं पूर्वांचल यूथ आईकॉन सम्मान से सम्मानित
       गोरखपुर,उत्तर प्रदेश